मंगलवार, 10 नवंबर 2015

मुझे अच्छा लगता है

तेरा ये रोकना 
बार बार मुझे टोकना
अच्छा लगता है

ना करते करते मान जाना
प्यार से मुझे समझाना
गुस्से में कभी कभी चुप हो जाना
मुझे अच्छा लगता है

तू सोचती है कि 
मैं क्यों इतना परेशान होता हूँ
रातो में देर तक जागकर क्यों सोता हूँ
और फिर बाद में आकर तुझे ये सब क्यों बोलता हूँ

"क्यूँकि "


जब तुम मेरा ध्यान रखती हो
बार  बार मेरा हाल सुनती हो
करती रहती हो कोशिशे मुझे खुश करने की
कुछ भी बातें बुनती हो
मुझे अच्छा लगता है

लेकिन कभी जब तुम गुमशुम होती हो
बेकार की बातों में दिल खोती हो
मेरा मजाक मुझे चुभ जाता है
कभी कभी तुम्हे मेरी वजह से रोना भी आता है
तब मैं भी दुखी हो जाता हूँ
बातें इधर उधर की बनाता हूँ
ताकि चेहरे पर तुम्हारे हंसी आ जाए
उदासी तेरी मुस्कान में खो जाए
फिर जब तुम खुश होती हो
हल्का सा गुस्सा दिखा कर नाराजगी में कहती हो
"तुम बुरे हो "
तो मुझे अच्छा लगता है..........

तेरी प्यारी आवाज़ में मेरे अजीबो गरीब नाम
तेरा डाँट खा कर भी करने उल्टे-सीधे काम
मुझे आकर सब कुछ बताना
दिल के जज्बात तेरे सिर्फ मुझे जताना
मुझे अच्छा लगता है.....

और भी है बहुत कुछ
कहा अनकहा
तेरे साथ महसूस किया
बहुत कुछ बाकी है
अभी बस थोड़ा सा बता दिया
मेरे साथ रहना हमेशा यु ही
क्यूंकि मैं कुछ भी कहु
"मुझे तू अच्छी लगती है" …… क्रमश;






मंगलवार, 13 अगस्त 2013

"माँ"

प्रेम हमेशा से एक पहेली है ! पर अगर इस पहेली को समझना हो या फिर इस पहेली का उत्तर खोजना हो तो बस एक बार माँ का चेहरा देख लो,उसके वात्सल्य से ही प्रेम पनपा है,अब जब मैं माँ से दूर हूँ  (माँ घर पर है और मैं मुंबई आ गया हूँ ) तो कई बातें दिल में आती है जो माँ को बता नहीं पाता हूँ कहीं वो और चिंतित न हो जाए !!
उन्ही कुछ बातों को लिखने की कोशिश है !!

एक पंक्ति में कहना हो तो इतना ही कहूँगा की "प्रेम शब्द है और माँ भाव है" और इस भाव से शायद ही कोई अछूता है !!


जीवन में मेरे सबसे पहले
प्रेम की पूर्ण लौ जगाने वाली,
अँधेरे से मुक्त कर इस दुनिया में लाने वाली
वो एक कहानी है ,
उसका ही मैं एक छोटा सा किस्सा हूँ
वो मेरी पहली दुनिया ,सारा संसार
उसका मैं  हिस्सा हूँ ,
पल पल जलती,
मेरी खुशियों के लिए
मोम सी पिघल जाती है,
रातो को करवटे बदल मुझे सुलाती थी,
बाद सुनने के तुझे मुझे नींद आती थी
अब दूर हूँ तुझसे तो याद करता हूँ,
जब तू सारी बातें मुझे बताती थी
अब तो बस एक फ़ोन कॉल से तू खुश होती है
मुझे पता है लेकिन,
रातो को तू याद में मेरी रोती  है
जब भी परेशान होता हूँ ,
याद करता हूँ तुझे
और खुश होता हूँ ,
तूने जो भी सिखाया है
अब मेरे काम आया है,
कहने को बहुत कुछ है
पर अभी इतना ही बता पाउँगा,
बाकी बातें  तब जब इस बार जब घर आऊंगा
कर रहा हूँ वही जो तूने कहा था सही,  
शब्दों  में बांधना तुझे मेरे बस में नहीं
तुझे लिखने से डरता रहा हमेशा ही
कभी कहा नहीं,
शायद ही कहूँगा कभी .......... निरन्तर क्रमश  कभी न ख़त्म होने वाली कविता/भाव /कहानी  ...........

"माँ" I LOVE YOU 

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Sagar aur Raet

Sagar kitna Khara hota hai
Fir bhi Raet ko Pyara hota hai
milte-bichudte hai har pal dono
maine samjha ise aaj jo kinare sagar ke aaya hu
Lehre milti kinoro par raet se  sagar ki
thapedo ko seh kr sokh leti hai unhe prem se raet bhi
aur fir turant baad moh chod kr sookh jaati hai
ki tabhi dusri leher bheegaane chali aati hai
roj yuhi ye niswarth prem chalta rehta hai
sagar prem ka sookhi raet ki ore hi behta hai
par raet hmesha ki tarah sagar ki hokar bhi sookhi rehti hai...........
is rookhe-sokhepan ki na jaane kya sachai hai
par dekh is milan ko jisme sirf viyog hai
yaad mujhe fir se do dilo ki aayi hai....
jo kareeb the jab toh kabhi mil na sake
aur ab dooriyo ka bahana bhi theek se nahi bnaate hai
na jaane kyu ghum fir kr sagar-raet ki tarh mil jaate hai
Haasil kuch nahi hota hai
Har mulakaat ke baad dubara milne ko  wapas bichad jaaate hai.........
Har mulakaat ke baad bus wapas bichad jaaate hai.........


KHOJ

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